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રવિવાર, 29 જૂન, 2025

शांति की इच्छा हो तो पहले इच्छा को शांत करो।"

 


इसका मूल भाव यह है कि जब तक हमारे भीतर इच्छाओं का तूफ़ान चलता रहेगा, तब तक सच्ची शांति मिलना असंभव है। हम अक्सर सोचते हैं कि अगर हमारी इच्छाएं पूरी हो जाएँ तो हमें शांति मिलेगी, लेकिन यह एक भ्रम है। इच्छाएं अंतहीन होती हैं — एक पूरी होती है तो दूसरी जन्म ले लेती है।



शांति" एक आंतरिक स्थिति है, जो तब आती है जब मन में कोई खिंचाव, आकांक्षा या लालसा न हो।


"इच्छा" एक मानसिक बेचैनी है, जो हमें वर्तमान से असंतुष्ट करती है और किसी भविष्य की स्थिति की ओर खींचती है।




मानो आपका मन एक झील हो — यदि उसमें इच्छाओं के पत्थर फेंके जाते रहें, तो उसमें लहरें उठती रहेंगी, और उसका पानी कभी शांत नहीं होगा। लेकिन जब पत्थर फेंकने बंद कर दिए जाएँ (यानी इच्छाएं छोड़ी जाएँ), तभी वह स्वाभाविक रूप से शांत हो पाएगा।

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